Sunday, 7 February 2016

अंजुरी भर बेर ने जीवन को रीता कर दिया .........

बड़ी गहरी उदासी है
टूट के बरसने को
उमड़ के आती है
खुद को छिपा लेती हूँ
भीगने का ड़र है
बह जायेंगे कब ये
माटी के घरोंदे
रोकती हूँ
भींचती हूँ
कसमसा रह जाती हूँ
टूट के जुड़ी नहीं
मन की टहनी
अंजुरी भर बेर ने
जीवन को रीता कर दिया
बसंत ने जीवन को
जेठ की दुपहर कर दिया






No comments:

Post a Comment