Tuesday, 2 February 2016

सत्ता में चेले है सत्ता में धेले हैं। सत्ता में मेले हैं सत्ता में अकेले हैं ...........

"सत्ता की माया है ,सत्ता की लीला है ,सत्ता की शीला है ,सत्ता की कहानी है ,सत्ता में रवानी है ,सत्ता में जवानी सत्ता में बुढ़ापा है। सत्ता में बचपन हैं ,सत्ता में अल्हड़ता है। सत्ता में फूहड़ता सत्ता में नफ़ासत है।

सत्ता में बीमारी सत्ता में दवाई है। सत्ता ही रोग सत्ता ही भोग है। सत्ता ही रोजगार सत्ता ही बेरोजगारी है। सत्ता दशा है सत्ता नशा है। सत्ता में गुण हैं सत्ता में अवगुण हैं। सत्ता बना दे सत्ता बिगाड़ दे ,सत्ता ही पत्ता है सत्ता ही सट्टा है। सत्ता ही निद्रा सत्ता ही अनिद्रा है

सत्ता का नशा है सत्ता की भाषा है। सत्ता का जंगल सत्ता का मंगल है। सत्ता में चेले है सत्ता में धेले हैं। सत्ता में मेले हैं सत्ता में अकेले हैं।

सत्ता का गीत नहीं सत्ता का मीत नहीं। सत्ता में झमेले सत्ता में तबेले हैं। सत्ता में मोहरे हैं सत्ता में चेहरे हैं। "

सत्ता सत्ता सत्ता सत्ता सत्ता ........

सत्ता पर निबंध है ये ,मेरे मन की भड़ास कहिये । मेरे पास रेडियो नहीं है चिल्ला के गाल फाड़ के "मन की बकवास " करने के लिए। यही एक मंच है जहाँ से मैं कह सकती हूँ कि बस करो ,जो तुम हो औकात से ज्यादा हो। जो ईश्वर ने दिया उस प्रसाद को हक मान बैठे हो। वोट दिया था काम करने को ,बकलोली ही करनी थी तो सोशल मीडिया में छत्तीस हैंडल बना दिन रात कंचे खेलते।

रोज एक बयान ,नया कोई बवाल !! काम कोई धेला नहीं ,कुरता फाड़ प्रतियोगिता मनाइये और ईनाम में रोज किसी होनहार की सभा सजा दीजिये। तुम खून भी करो हम गाली ना दें ? तुम पद का मान न रखो हम चुप रहें ? तुम व्यवस्था को नौकर बना अपने दरवाजे बांध लो हम चीखें भी नहीं ? दावे करके मुकर जाओ , सबके हिस्से का जीम जाओ और जो भूखा -नंगा है उसको लाठी से पिटवाओ ?

सत्ता का खेल ये सत्ता की ढेलमपेल है। षडयंत्रो की रचना करते हो और सत्ता के बगीचे में राजनीति की भैसें बांध लेते हो। चार चमचे चेले ढेले पत्थर इक्कठे क्या कर लिए खुद को शहंशाह ए कायनात समझने लगे हो।

मूर्ख हो ,जो कुर्सी से उतरे तो ये भीड़ ऐसे छंटेगी मनो कभी थी ही नहीं। बड़े बड़े सूरमा चले गए ,सब चले जाएंगे।
सत्ता का सुख मिला है तो किसी के सुख की सत्ता में सहभागी बनिए। लाठी लेकर हांकने वाले भी मौका देख रहे हैं कि कब उनके हाथ ये लाठी लगती है।

सत्ता के अभिमान से अभिभूत हे व्यवस्था खुद पर रीझना बंद कर दो। तुम उतनी भी सुंदर नहीं कि मैं आसमान तक सीढी बन सदा सर्वदा खड़ा ही रहूँ।

.......... मन की बात बहुतेरे करते हैं पर बात मन की हो तब मजेदारी है। जीने भी दीजिये ,ख्वाहिशों के मौसम में सत्ता का रंग कुछ जमता नहीं ! रंग भरिये इश्क़ के ,मोहब्बत जमाने से कीजिए अक्ल के पीछे लाठी लिए कब तक दौड़ते रहिएगा !

फ़रवरी का महीना है ! बासंती हो जाइए !


No comments:

Post a Comment